Arif Mohammad Khan बिहार के नए गवर्नर बने:
Arif Mohammad Khan बिहार का नए राज्यपाल बनाया गए, उन्होंने राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर की जगह यह शपथ लिया । इसके पहले वह केरल के राज्यपाल थे ।

2 जनवरी, 2025 दिन गुरुवार को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई गए, उनको शपथ पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीलिये ।
दूरदर्शी नेता और प्रभावशाली राज्यपाल:
आरिफ मोहम्मद खान एक भारतीय राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद् हैं, इन्होने देश की शिक्षा, शासन और सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक छात्र नेता से एक प्रभावशाली राजनेता तक की उनकी राजनितिक यात्रा सार्वजनिक सेवा के प्रति उनके समर्पण को दर्शाती है।
Arif Mohammad Khan,प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में 18 नवंबर 1950 को आरिफ मोहम्मद खान का जन्म हुआ था । प्रारंभिक स्कूली शिक्षा अलीगढ से पूरी करने के बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) से पूरी की, जहाँ उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की।
Arif Mohammad Khan,राजनीतिक कैरियर:
आरिफ मोहम्मद खान ने छात्र जीवन से ही राजनीति में कदम रखा था। उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ही किया था । वे पहले एएमयू के महासचिव बने और फिर अध्यक्ष के तौर पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ का नेतृत्व किया।
1970 के दशक में जब वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के सदस्य बने तो एक छात्र नेता से बदल कर पूर्ण रूप से राजनीति में प्रवेश कर लिया ।1980 में उन्हें सांसद के रूप में चुना गया, जिससे राष्ट्रीय राजनीति में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका की शुरुआत हुई।
Arif Mohammad Khan appointed as the new Governor of Bihar pic.twitter.com/hspcE46PXz
— Bihar Infra Tales (@BiharInfraTales) December 24, 2024
राजनेता के रूप में कार्य :
लोकसभा सदस्य के रूप में उन्होंने शिक्षा, धर्मनिरपेक्षता और मानवाधिकारों की सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर काम किया । इन मुद्दों के प्रति आरिफ मोहम्मद खान की प्रतिबद्धता ने उन्हें पूरे राजनीतिक क्षेत्र में सम्मान दिलाया।
मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के संबंध में भारत में एक ऐतिहासिक कानूनी पर बात किया । उन्होंने शाह बानो के केस में एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने का आह्वान किया गया था, जिससे उन्हें काफी प्रशंसा मिली। लेकिन इससे कांग्रेस पार्टी के भीतर विवाद भी पैदा हो गया और 1980 के दशक में उन्हें कांग्रेस पार्टी से अलग होना पड़ा, जिससे उनकी राजनीतिक संबद्धताओं में बदलाव आया।
न्याय और लैंगिक समानता के पक्ष में व्यक्तिगत कानूनों की प्रतिगामी व्याख्याओं को चुनौती देने के उनके साहस को प्रदर्शित किया। विवादों के बावजूद, खान उदार मूल्यों के प्रबल समर्थक बने रहे, एक आधुनिक, लोकतांत्रिक भारत के आदर्शों को बढ़ावा दिया, जो धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करता था और यह सुनिश्चित करता था कि मौलिक अधिकार सांप्रदायिक विभाजन से परे हों।

बिहार में राज्यपाल पद:
आरिफ मोहम्मद खान 26 साल बाद बिहार के दूसरे मुस्लिम राज्यपाल बने है । इनके पहले एआर किदवई बिहार के राज्यपाल रहे थे, वो भी उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे,उनका कार्यकाल 14 अगस्त 1993 से 26 अप्रैल 1998 तक रहा था।
राज्यपाल के रूप में, उन्होंने राज्य के शैक्षिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर महत्वपूर्ण जोर दिया है क्यूंकि बिहार जो साक्षरता और सामाजिक-आर्थिक विकास के मामले में चुनौतियों का सामना करता है। खान ने संवैधानिक औचित्य बनाए रखने, राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देने और बिहार के लोगों के कल्याण की देखरेख करने की जिम्मेदारी ली है।
विरासत और प्रभाव:
बिहार के राज्यपाल के रूप में आरिफ मोहम्मद खान की विरासत, संविधान के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और राज्य में शिक्षा, न्याय और धर्मनिरपेक्षता पर उनका जोर, उनके विशाल कानूनी और राजनीतिक अनुभव के साथ, निस्संदेह राज्य के शासन पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ेगा।
शासन में पारदर्शिता, कानून के शासन और निष्पक्षता की वकालत करने की उनकी प्रतिष्ठा के कारण उनके कार्यकाल पर कड़ी नजर रखी जा रही है।